मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
अध्याय १
मोक्ष
मोक्ष वास्तव में हमारी आत्मसंतुष्टि है... जब हमारी कामनाएं आनंद की अनुभूति करने लगती हैं इसको हम अपनी सुविधानुसार आनंद, सुख, संतुष्टि या समाधि भी कहते हैं. मोक्ष सम्पूर्ण तृष्णाओं के भोग अर्थात सम्पूर्ण भोग या सम्भोग से ही प्राप्य है.
त्याग
मोक्ष की एक नकारात्मक अवधारणा त्याग है अर्थात समस्त तृष्णाओं का त्याग कर देना इसे भी कुछ व्यक्ति मोक्ष ही मानते हैं किन्तु ऐसा सत्य नहीं है.... त्याग एक भ्रम है जो आपकी नियति को नकारात्मक निर्धारित करता है. आपने जिस वास्तु को पूर्णतः प्राप्त ही नहीं किया उसका त्याग कैसे कर पायेंगे. त्याग केवल
धर्म
तृष्णा के भोग पर नियंत्रण करने वाला भय इसे कभी सम्पूर्ण रूप से भोगने नहीं देता इस बाधा को दूर करने के लिए चिंतन-मनन-अध्ययन के द्वारा ज्ञानी-विज्ञानियों जिन्हें ऋषि कहा गया, ने एक प्रकृति आधारित व्यवस्था का निर्माण किया जिसे हम धर्म कहते हैं. साधारणतः हम धर्म को पूजन पद्धति, पंथ, संप्रदाय, मजहब या रिलिजन समझते हैं लेकिन "धर्म" का अभिप्राय व्यवस्था या जीवन पद्धति धारण करने से है. अर्थात भय मुक्त व्यवस्था ही धर्म है.
तृष्णा
अनादि काल से संसार के जीव विभिन्न प्रकार की तृष्णाओं में जीवन जीते हुए तुष्टि की कामना करते रहे हैं और करते रहेंगे. संसार में 5 रूप में तृष्णा को परिभाषित किया गया है :-१- काम
२- क्रोध
३- मद
४- लोभ
५- मोह
यही पांचों तृष्णायें जीवन को जीने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और सभी जीवों को परस्पर सामंजस्य से रहने को प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि सभी को अपनी तृष्णा की पूर्ति के लिए अन्य के सहयोग की लालसा ही समाज का निर्माण करती है.
भय
इसके साथ ही एक अन्य शक्ति भी जो इन सब को नियंत्रित करती है :-भय
भय तृष्णा की पूर्ति की मानसिकता और प्रयासों को विकृत और निकृष्ट होने से रोकता है जिससे किसी एक या अधिक के हित साधने में किसी अन्य का अहित न हो.
भगवन या भगवान्
अब आप कहेंगे की भगवान भी तो हैं........ में भी कहूँगा की भगवान् ही हैं जो समस्त सृष्टि को संचालित करते हैं, लेकिन क्या अप भगवान् को जानते हैं... ???भगवान् = भ + ग + व् + अ + न अर्थात पंचवर्ण या पंचतत्वो का संयोग
भ = भूमि
ग = गगन
व = वायु
अ = अग्नि
न = नीर
इन्ही पंचतत्वों से सम्पूर्ण सृष्टि का सञ्चालन होता है
शेष आगामी अध्याय में ..............